✍🏼 विकास गुप्ता
(भारतीय राजनीति का ये
बुरा दौर ही कहा जायेगा जब कोई सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी जनता के जरूरी
मुद्दों पर चुनाव न लड़ कर धर्म के नाम पर, मंदिर के नाम पर, लोगों को
आतंकवाद और पाकिस्तान से डरा कर चुनाव लड़ रही है। बीते पांच सालों में देश
की आर्थिक हालात बदतर होते गए हैं जिससे बेरोजगारी अपने चरम स्तर पर है।
वर्तमान में सरकार अपने आप को चौतरफ़ा घिरा हुआ पा रही है। सरकार के सारे
स्टंट योजनाएं जैसे नोटबन्दी और GST बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुए हैं और
इसकी वजह से 1.1 करोड़ लोगों की नौकरी चली गयी। बेरोजगारी की दर पिछले 45
सालों में सबसे अधिक है और इस मुद्दें पर कोई नेता बोल नही पा रहा है। चारो
तरफ से मुद्दाविहीन होती जा रही सत्ताधारी पार्टी के पास बहुसंख्यक आबादी
को ध्रुवीकरण करने के अलावा और कोई विकल्प नही हैं।)
दो
दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी रैली में कहा कि इतिहास
देखे तो कोई एक भी आतंकी घटना हिंदुओं ने नही की है और हिन्दू आतंकवाद शब्द
कांग्रेस ने हिन्दूओं को बदनाम करने के लिए बनाया है। यह बयान काफी चालाकी
भरा है, इसका जबाब देते-देते मोदी के विरोधी इसमें फँस सकते हैं। आईये
देखते हैं कैसे-
मोदी जी ने कहा है कि हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता।
ऐसे
में बहुत सारे लोग इस बयान का खंडन करते हुए कहेंगे कि आतंकवाद का कोई
धर्म नहीं होता, नाथूराम गोडसे द्वारा गाँधी जी की हत्या से लेकर सनातन
संस्था द्वारा किये गए बम धमाकों तक के लिए हिन्दू कट्टरपंथ जिम्मेदार रहा
है।
ऐसे में बीजेपी ऐसा माहौल बना सकती है कि देखिए कैसे ये लोग हिंदुओं को आतंकवादी साबित करने पर तुले हैं।
इस
प्रकार काफी चालाकी से एक बड़ी हिन्दू आबादी के बीच ध्रुवीकरण हो जाएगा,
बिना कोई नकारात्मक भड़काऊ बयान दिए। फिलहाल बात यह है कि इसका खंडन आम लोग
ही कर रहे, किसी विपक्षी नेता ने इसपर कोई टिप्पणी नहीं की है।
एक
चीज़ जो पूरी तरह से साफ दिख रही है कि 2014 के चुनावों में जिस तरह गुजरात
मॉडल, विकास, कालाधन, भ्रष्टाचार आदि मुद्दा हुआ करता था, आज मुद्दे बदल
चुके हैं। इनकी जगह पर बीजेपी साम्प्रदायिकता, आतंकवाद और राष्ट्रवाद का
भरपूर इस्तेमाल कर रही है। इसकी तैयारी 2014 से ही चल रही थी। आये दिन
व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर हमेशा ऐसे फेक या भड़काऊ चीजें प्रसारित
किया जाता रहता है जिससे माहौल ख़राब कर के बहुसंख्यक आबादी को अपने पक्ष
में कर के वोट लिया जा सके। इसीलिए आज एक बड़ी आबादी ऐसी भी पैदा हो गयी है
जो यह कहती है-
"रोजगार नहीं चाहिए, विकास नहीं चाहिए, शिक्षा-चिकित्सा नहीं चाहिए पर राम मंदिर चाहिए।"
जो यह कहती है कि-
"चाहे 200 रुपये लीटर पेट्रोल खरीद लेंगे लेकिन मोदीजी को ही जिताएंगे।"
ऐसे
लोगों के दिमाग मे पुछले कुछ सालों में यह बात बैठा दी गयी है कि हिन्दू
संस्कृति खतरे में हैं जिसे मोदीजी ही बचा सकते हैं, बाकी पार्टियाँ तो देश
के खिलाफ हैं। ऐसे लोगों के दिमाग पर बीजेपी-आरएसएस आईटी सेल का एक
वर्चस्व बन चुका है। जो इनकी सोच को इसतरह से ढाल रहा है कि इनको बीजेपी का
विरोध करने वाला हर व्यक्ति देशद्रोही लगे, या देश के खिलाफ साजिश करने
वाला लगे, पाकिस्तानी एजेंट लगे। हरिशंकर परसाई ने कहा था कि ऐसी भीड़ का
इस्तेमाल ताकतवर लोग अपने राजनीतिक फायदों के लिए कर सकते हैं।
जहाँ तक आतंकवाद की बात है वो किसी विशेष धर्म से नही जुड़ा है जबकि
आतंकवाद की समस्या पूरी तरह से एक राजनीतिक-आर्थिक समस्या है। प्रधानमंत्री
आरएसएस की जिस विचारधारा को लेकर चलते हैं उनसे इस तरह की बातें सुनकर
आश्चर्य की कोई बात नही है। दंगे करवाना, फ़र्ज़ी एनकाउंटर करवाना,
बलात्कारियों के समर्थन में रैली निकालना ये शायद इनकी आतंकवाद की परिभाषा
में नहीं आता। 2002 के गुजरात दंगों में बीसों लोगों को मौत के घाट उतारने
वाला बाबू बजरंगी इसीलिए बाहर आ सका है कि शायद वह "आतंकवाद" की परिभाषा
में फिट नहीं बैठता। दादरी में अखलाक की गाय के मांस खाने के शक के आधार पर
जो हत्या हुई उस हत्या का मुख्य अभियुक्त शायद इसीलिए योगी आदित्यनाथ की
सभा मे सबसे आगे स्थान पा सकता है। शायद इसीलिए स्वतंत्र भारत का पहला
आतंकवादी नाथूराम गोडसे आरएसएस व हिन्दू महासभा के लिए एक "शहीद नाथूराम
जी" हो सकता है। समझौता एक्सप्रेस धमाके के अभियुक्त NIA द्वारा मुख्य सबूत
न दिए जाने के कारण इसीलिए बाहर आ सकते हैं। सनातन संस्था के कार्यकर्ता
के घर 20 किलो से ज्यादा विस्फोटक और हथियार मिलने के बाद भी शायद इसीलिए
उसपर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है। उत्तर प्रदेश में अभी कुछ दिन पहले ही
पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सिंह की हत्या इसलिये की गई क्योंकि सुबोध ने
अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए एक दंगा भड़कने से रोका था, सुबोध की हत्या
भी धर्म बचाने के नाम पर ही की गयी थी।
शायद दंगा
भड़काने, हत्या, बलात्कार, को बीजेपी द्वारा आतंकवाद की श्रेणी में रखा ही
नहीं जाता तभी तो ADR की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी में ही सबसे ज्यादा
दंगाई व आपराधिक बैकग्राउंड के नेता भरे पड़े हैं।
अब
फिर से आते हैं प्रधानमंत्री के बयान पर, एक बात स्पष्ट है प्रधानमंत्री
ने यह बयान अपने राजनीतिक फायदे के लिए ही दिया है। भारतीय राजनीति का ये
बुरा दौर ही कहा जायेगा जब कोई सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी जनता के जरूरी
मुद्दों पर चुनाव न लड़ कर धर्म के नाम पर, मंदिर के नाम पर, लोगों को
आतंकवाद और पाकिस्तान से डरा कर चुनाव लड़ रही है। बीते पांच सालों में देश
की आर्थिक हालात बदतर होते गए हैं जिससे बेरोजगारी अपने चरम स्तर पर है।
वर्तमान में सरकार अपने आप को चौतरफ़ा घिरा हुआ पा रही है। सरकार के सारे
स्टंट योजनाएं जैसे नोटबन्दी और GST बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुए हैं और
इसकी वजह से 1.1 करोड़ लोगों की नौकरी चली गयी। बेरोजगारी की दर पिछले 45
सालों में सबसे अधिक है और इस मुद्दें पर कोई नेता बोल नही पा रहा है। चारो
तरफ से मुद्दाविहीन होती जा रही सत्ताधारी पार्टी के पास बहुसंख्यक आबादी
को ध्रुवीकरण करने के अलावा और कोई विकल्प नही हैं। 2014 में विकास के नाम
पर वोट मांगने वाली भाजपा के पास अंधराष्ट्रवाद और धर्म का ही मुद्दा है
जिसके दम पर 2019 में किसी तरह लोंगो को भावनात्मक रूप से अपने तरफ कर के
ये चुनाव जीतना चाहते हैं। 2014 के सारे मुद्दे बीजेपी भूल चुकी है। धर्म
और राजनीति का यह समांगी मिश्रण एक मीठे जहर की तरह है जो स्वाद में अच्छा
तो लगता है लेकिन शरीर को बहुत नुकसान पहुचाता है। ऐसे में आज जनता को
बीजेपी की इस चाल को समझने की जरूरत है।
हमें
अपने महान शहीदों को याद करने की जरूरत है, महान लेखकों को याद करने की
जरूरत है। भगतसिंह ने जनता को बार बार साम्प्रदायिकता के प्रति आगाह किया
था, जनता को ऐसे नेताओं और ऐसी मीडिया से दूर रहने के लिए कहा था। मुंशी
प्रेमचंद ने कहा था कि साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई देती है, उसे
अपने असली रूप में आने में लज्जा आती है इसलिए वह संस्कृति की खाल ओढ़कर
आती है। आज जो हिन्दू संस्कृति की रक्षा की बात हो रही है शायद हमारे
नौजवान उसको इस रोशनी में समझ पाएंगे।
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