✍🏼 विकास गुप्ता
“दुनिया
से वादा किया गया था कि आवश्यकताओं के बंधन से मुक्ति मिलेगी लेकिन दुनिया
का बड़ा हिस्सा भुखमरी का सामना कर रहा है जबकि दूसरे प्रचुरता का जीवन जी
रहे हैं।”
-आइंस्टीन
एक
वैज्ञानिक दुनिया और मानव समाज को वैज्ञानिक ढंग से देखता है। विज्ञान के
नियम सिर्फ फॉर्मूले और गणितीय प्रक्रियाओं तक सीमित नही होते हैं, जबकि
विज्ञान समाज को एक विश्वदर्शन देता है, विश्व को समझने का एक आधार देता
है, अपने समाज को भी समझने की तर्कणा देता है, जिस पर मानव सभ्यता आगे बढ़ती
है। विज्ञान तर्क करना सिखाता है तथा रुढियों और अंधविश्वास पर चोट करता
है। ये बात जरूर है कि विज्ञान कभी भी अंतिम सत्य की बात नही करता है,
क्योंकि विज्ञान जैसे ही एक रहस्य से पर्दा उठता है वैसे ही दूसरा रहस्य
सामने आ जाता है और इस प्रक्रिया में विज्ञान ज्ञान की गहराइयों तक बढ़ता
जाता है। एक सिद्धान्त के बाद दूसरे सिद्धांत विज्ञान में आते रहते हैं जो
पहले सिद्धान्त के तुलना में ज्यादा सटीक और विषयवस्तु को अधिक गहराई से
समझाते हैं और इस प्रकार विज्ञान अपने आप को हमेशा परिवर्तनशील और तार्किक
रखता है। यही बात समाज पर भी लागू होती है, विज्ञान के विकास के साथ हमारा
सामाजिक और आर्थिक जीवन भी बदलता है, विज्ञान के प्रकाश में अपनी बुराइयों
और अवरोधों को हटाते हुए मानव समाज भी आगे बढ़ता है। इसीलिए एक वैज्ञानिक
केवल एक प्रयोगशाला का प्राणी न होकर इस समाज का एक महत्वपूर्ण अंग होता है
जिसे अपने ज्ञान का इस्तेमाल पूरी मानवजाति और विश्व की बेहतरी के लिए
लगाना होता है।
आइंस्टीन सच्चे मायने में एक
वैज्ञानिक थे। आइंस्टीन ने अपने को विज्ञान के फार्मूले और गणितीय
संक्रियाओं तक सीमित नही रखा जबकि समाज के बारे में भी अपना तार्किक पक्ष
रखा था। समाज में फैली गरीबी-अमीरी की खाई, भुखमरी, विश्वयुद्ध, मुनाफे के
लिए पर्यावरण की बर्बादी पर लगातार अपना पक्ष रखा।
ऐसे महान वैज्ञानिक को हमारा नमन!
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